फिल्म अभिनेता सुशान्त सिंह राजपूत की मौत के साढ़े चार वर्षों के बाद अंतत: केन्द्रीय जांच ब्यूरो ने अदालत को क्लोज़र रिपोर्ट थमा ही दी जिसके कारण उनकी मित्र रही रिया चक्रवर्ती को, जो स्वयं भी एक अदाकारा रही हैं, लगभग एक माह तक जेल की सलाखों के पीछे तो रहना ही पड़ा था, देश भर के नफ़रतियों तथा सुशान्त की मौत का राजनीतिक लाभ लेने वालों की ओर से जिल्लतों का सामना करना पड़ा था।
देश की मुख्यधारा का मीडिया कितने पूर्वाग्रहों और गैरजिम्मेदाराना ढंग से काम करता है- यह भी साबित हुआ है। दर्शक संख्या बढ़ाने के लिये, जिसे टीआरपी कहा जाता है, न्यूज़ चैनलों ने सारी हदें पार कर मामले को सनसनीखेज तो बनाया ही था, एक मासूम की इज्ज़त को तार-तार भी किया था। इस मामले को बाकायदा बिहार बनाम पश्चिम बंगाल तक का रूप दे दिया गया था। सोशल मीडिया पर भी भरपूर ज़हर परोसा गया था। सीबीआई ही नहीं, वरन पांच अलग-अलग स्तरों पर मामले की जांच हुई थी। देश की सर्वोच्च जांच एजेंसी को किसी भी तरह की साजिश के कोई साक्ष्य नहीं मिले। सीबीआई अधिकारियों के अनुसार उसने सुशान्त के पिता की शिकायत वाले मामले में पटना की विशेष अदालत के सामने और दूसरे मामले में मुंबई की विशेष अदालत में क्लोज़र रिपोर्ट दा$िखल की है।
अब सवाल यह है कि क्या मीडिया ट्रायल चलाने वाले अपनी गलती स्वीकारेंगे और खासकर रिया से क्षमा मांगेंगे जिस पर झूठे आरोप लगाये गये तथा जिसकी प्रतिष्ठा को धूल-धूसरित किया गया? हिन्दी सिनेमा के कामयाब व लोकप्रिय कलाकार सुशान्त 14 जून, 2020 को मुम्बई के बान्द्रा स्थित अपने फ्लैट में मृत पाये गये थे। बताया जाता था कि वे अवसादग्रस्त तो रहते ही थे, उन्हें ड्रग्स की भी लत थी। पहले से आशंका थी कि उन्होंने नशीली दवाओं का ओवरडोज़ लिया था और खुदकुशी की थी, लेकिन मीडिया के साथ सुशान्त के परिजनों ने रिया पर हत्या का आरोप लगाया। इसका मकसद सुशान्त के पैसे तथा जायदाद हड़पना बताया था। पहले तो मुंबई पुलिस ने जांच की तथा इसे प्रथम दृष्टया आत्महत्या बतलाया लेकिन परिजनों के शोर-शराबे के बाद बिहार पुलिस और अंतत: सीबीआई ने इसकी जांच की। नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (एनसीबी) और प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने भी अपने-अपने एंगल से जांच की थी परन्तु हत्या के सबूत नहीं मिल सके। इसलिये जांच के बाद अब सीबीआई ने क्लोज़र रिपोर्ट अदालत में दाखिल कर दी है। हालांकि अब न्यायालय तय करेंगी कि इसे स्वीकारना है या आगे जांच के आदेश देने हैं।
अभिनेता का सीधा-सीधा आत्महत्या का लगता मामला मीडिया ट्रायल के चलते व राजनीतिक दबावों के कारण पेचीदा कर दिया गया था। पुलिस एवं सुशान्त की बहनों द्वारा लगाये गये आरोपों के साथ सीबीआई ने उस मामले पर भी गौर किया जो रिया चक्रवर्ती ने सुशान्त की बहनों के ख़िलाफ़ बांद्रा कोर्ट में दायर किया था। उसने सुशान्त की बहनों पर आरोप लगाया था कि उन्होंने दिल्ली के किसी डॉक्टर की फ़ज़ीर् पर्ची के आधार पर अपने भाई को दवाइयां दी थीं। इन दवाओं के सेवन से ही कलाकार की मौत हुई। सुशान्त का पोस्टमार्टम कूपर हॉस्पिटल में किया गया था जिसमें मौत की वजह 'दम घुटने' से बताई गई। एम्स के डॉक्टरों का बोर्ड भी बनाया गया था जिसने अपनी रिपोर्ट सीबीआई को सौंपी थी।
रिया का मामला मुफ्त में लड़ने वाले प्रसिद्ध वकील सतीश माने शिन्दे ने सीबीआई की तारीफ करते हुए जो कहा है वह ध्यान देने योग्य है। उन्होंने बयान दिया है कि, 'सोशल मीडिया और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में झूठी ख़बरें फैलाई गईं। निर्दोषों को मीडिया और जांच अधिकारियों के सामने परेशान किया गया। उम्मीद है कि यह किसी अन्य मामले में दोहराया नहीं जाएगा। रिया को अनगिनत दुखों से गुज़रना पड़ा और बिना गलती के 27 दिनों तक सलाखों के पीछे रहना पड़ा, जब तक कि मुंबई हाईकोर्ट ने उन्हें ज़मानत पर रिहा नहीं किया।' उन्होंने रिया तथा उनकी टीम को मिलने वाली धमकियों का ज़िक्र भी किया तथा रिया के परिवार की तारीफ की कि उन्होंने चुप रहकर भी अपने साथ हुए अमानवीय व्यवहार को सहन किया। उन्होंने न्यायपालिका का ज़िक्र करते हुए कहा- 'यह देश अभी भी बहुत सुरक्षित है। न्याय की मांग करने वाले हर नागरिक को हमारी जीवंत न्यायपालिका से उम्मीद है।'
रिया जैसी उभरती हुई कलाकार के खिलाफ जिस प्रकार से देश भर में विषाक्त माहौल बनाया गया, उससे उसे कई महीनों तक सतत अपमान और प्रताड़ना झेलनी पड़ी थी। उसके खिलाफ़ मनगढ़ंत आरोप सोशल मीडिया पर तैरते रहे। कथित मुख्यधारा के मीडिया ने भी एक बेकसूर महिला को न सिर्फ सरेआम अपमानित किया वरन उसके जीवन के सबसे खूबसूरत वर्षों को बर्बाद कर उसका कैरियर ही तबाह कर दिया। ऐसे हर उस मीडिया संस्थान और व्यक्ति को रिया से क्षमायाचना करना चाहिये। वे उस युवती के अपराधी हैं जो अपनी आंखों में ऊंचे ख्वाब लेकर मनोरंजन की दुनिया में कुछ करने आई थी। हालांकि ऐसी नैतिकता व साहस न तो इन टीवी चैनलों में शेष है, न ही उन लोगों में जो विवेकशून्य होकर किसी राष्ट्रीय सनसनी का उपकरण बन जाते हैं। सुशान्त सिंह का मामला बताता है कि मीडिया ट्रायल का असर और अंजाम किसी व्यक्ति के लिये कितना बुरा हो सकता है। इससे देश को बचना चाहिये क्योंकि यह खतरनाक प्रवृत्ति है जिसमें दोषी बचते हैं और निर्दोष पिसे जाते हैं। यदि सीबीआई की क्लोज़र रिपोर्ट को न्यायालय स्वीकार करती है तो उससे यह उम्मीद भी रहेगी कि वह मीडिया ट्रायल करने वालों की खबर ले।